Wednesday 25 August, 2010

चाहतें

ज़िन्दगी गर रेत का ढेला है,
तो उसे मुट्ठी में भरना चाहते हैं हम।
न हुए कामयाब तो क्या,
एक कोशिश फिर भी करना चाहते हैं हम।।
पतंग बन खुले आसमान में उड़ना चाहते हैं हम,
उमंगों के दम पर नए आयाम लिखना चाहते हैं हम।
कट जाने पर भी मुस्कुराना चाहते हैं हम,
टूट कर फिर से नयी उड़ान भरना चाहते हैं हम॥
दरिया में मदमस्त नाव बन मौज करना चाहते हैं हम,
बिना थमे सुध-बुध खोकर बहना चाहते हैं हम
डूब गए तो फिर से तर जाना चाहते हैं हम,
बस निरंतर मुश्किलों से लड़े प्रवाहित होना चाहते हैं हम।।
अगर रह गए कुछ पल अकेले तो,
तेरी बातों के आलिंगन में खोना चाहते हैं हम।
ज़िन्दगी गर एक लम्बा सफ़र है,
तो हमसफ़र तेरा साथ चाहते हैं हम।।
इन चाहतों के समंदर में गोते लगाना चाहते हैं हम,
बस अपने मन की आवाज़ सुनना चाहते हैं हम।
दुनिया नहीं, बस कुछ दिल जीतना चाहते हैं हम
कामयाबी के शिखरों पर अपना नाम लिखना चाहते हैं हम।।

4 comments:

अनामिका की सदायें ...... said...

आप की रचना 27 अगस्त, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
http://charchamanch.blogspot.com

आभार

अनामिका

Asha Joglekar said...

ज़िन्दगी गर एक लम्बा सफ़र है, तो हमसफ़र तेरा साथ चाहते हैं हम।। इन चाहतों के समंदर में गोते लगाना चाहते हैं हम, बस अपने मन की आवाज़ सुनना चाहते हैं हम। दुनिया नहीं, बस कुछ दिल जीतना चाहते हैं हमकामयाबी के शिखरों पर अपना नाम लिखना चाहते हैं हम।।
वाह कितनी खूबसूरत ख्वाहिश है ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आशा की किरण चमकाती यह रचना बहुत सुन्दर है!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

चाहतों के सिलसिले को बताती अच्छी अभिव्यक्ति