Thursday 27 June, 2013

मैं आज़ाद थी, आज़ाद हूँ?

बंधनों से जकड़ी हूँ,
समाज के दायरे में फंसी हूँ,
रीती-रिवाजों की  कठपुतली हूँ,
परिवार के झूठे सम्मान की कड़ी हूँ,
हर फैसले के लिए औरों को तकती हूँ,
वो कहतें हैं, फिर भी गर्व से,
मैं आज़ाद थी, आज़ाद हूँ।

अपनी हर हार मंगलसूत्र में छिपाए,
पायल की झंकार से अपनी सीमा बनाए,
आभूषणों से सजी एक बंधक हूँ,
अपनी शादी का बस एक स्टाम्प हूँ,
पति के नाम, साये में कहीं गुम हूँ,
वो कहतें हैं, फिर भी गर्व से,
मैं आज़ाद थी, आज़ाद हूँ।

पहले पिता के संस्कारों की प्रदर्शनी थी,
इसलिए मायके में कभी हंस न सकी,
बाद में आदर्श बहु, पत्नी की छवि में कैद थी,
इसलिए खुलकर कभी जी न सकी,
बूढी हुई, तब कमज़ोर थी,
इसलिए ये कभी कह न सकी,
उनकी आज़ादी की परिभाषा,
कभी भी समझ न सकी।

वो कहते रहे- मैं आज़ाद हूँ,
वो सपना बुनते रहे- मैं आज़ाद हूँ,
वो खुद की दिलासा देते रहे,
मैं आज़ाद थी, आज़ाद हूँ,
वो सच से भागते रहे,
मैं आजद थी, आज़ाद हूँ,
वो कहते रहे गर्व से,
मैं आज़ाद थी, आज़ाद हूँ।

जीने दिया उनको मैंने ये सोचकर,
क्या कर लेंगे, वो सच जानकर,
हमेशा खामोश थी, उनकी इस बात पर,
'आज़ाद हूँ मैं, ज़िन्दगी के हर मोड़ पर,
हाँ, आज इस दो गज़ ज़मीन के नीचे,
कहती हूँ सच आखिरी सांस लेकर,
मैं पराधीन थी, पराधीन हूँ, पराधीन रहूंगी,
जब तक तुम्हारी, झूठी कल्पना में कैद रहूँगी।।

Friday 22 February, 2013

कुछ लिखा है...

कुछ किया है,
बहुत करना बाकी है।
कुछ ज़ाहिर किया है,
बहुत कहना बाकी है।  
कुछ लिखा है...
पर गहराईओं को छुना बाकी है।

कुछ सोचा है,
बहुत संजोना बाकी है। 
कुछ देखा है,  
बहुत महसूस करना बाकी है।  
कुछ लिखा है...
पर अक्षरों को ढूंढना बाकी है।

कोई राग छेड़ा है,
पर सुरों को समझना बाकी है।
बहुत सच को सुना है,
पर उसे जीना  बाकी है।
कुछ लिखा है...
पर शब्दों  सजाना बाकी है।

प्यार किया है बहुत,
पर जाताना बाकी है।
प्रेम-पत्र लिखे हैं बहुत,
पर प्रेम का मतलब समझना बाकी है।
कुछ लिखा है...
पर जज़बातों को समझना बाकी  है।

सजदा किया है बहुत,
पर संजीदा होना बाकी है।
ख्वाब देखे हैं बहुत,
पर हकीकत बनाना बाकी है।
कुछ लिखा है...
पर पंक्तियों का तालमेल बाकी है।

बहुत कम किया है,
बहुत करना बाकी है।
बनना है कलमकार,
पर कलम पकड़ना बाकी है।
कुछ लिखा है...
पर भाषा का ज्ञान बाकी है।
ये तो बस शुरुआत है,
अभी आसमान छुना बाकी है।
अर्श पर अपना नाम लिखना बाकी है।


Tuesday 4 December, 2012

एक गुस्ताखी

मौसमों की एक गुस्ताखी है,
बेपरवाह बूंदों की मज़बूरी है,
ठंडी  नब्ज़ों की परेशान करवटें हैं,
जलती तमन्नाओं की राख है,
बेजान पतझड़ों का ये बीहड़ है।

परछाइयों से कांपती पदचाप है,
अधीर मन की टूटन-फूटन है,
अधकच्चे सपनों की बिखरन है,
अनकहे शब्दों का कालुष है,
क्षण में जीवन की ये करवट है।

कल्पना की कोशिश निष्क्रिय है,
कलम की स्याही भी सूखी है,
दशा औ दिशा अब कमज़ोर है,
मौसम हर अब खामोश है,
नैनों में तिमिर की बस आहट है।
नैनो में तिमिर की बस आहट है।

मौसमों का रवैय्या कुछ रूठा है,
नदी का बहाव ज़रा ठहरा है,
लिए हाथ में पतवार फिर भी,
मंजिल के तरफ एक कदम लिया है,
खुद को ढूँढने का साहस किया है।
मन की आँखों को जाग्रत किया है।

Sunday 27 February, 2011

कभी सोचा न था

कभी सोचा न था
इतने बदल जायेंगे
देख कर दुःख दुनिया का
मन ही मन मुस्कुराएंगे
लिखे न जो शब्द कभी
आसानी से कह जायेंगे
कभी सोचा न था
कह कर भी सब यूँ खामोश हो जायेंगे।
स्व- समझदारी के भ्रम में
दुनिया से छले जायेंगे
लोगों में पहचाने जाने की होड़ में
अपनी ही नज़रों में खो जायेंगे
दोस्तों की चाह में
बेगानों का समां पाएंगे
कभी सोचा न था अपनी मासूमियत भूल जायेंगे
चंद महीनों में इतने बदल जायेंगे।
हंसी- ठ्ठे की राहों में
गम के रोड़े हज़ार मिल जायेंगे
छोटे शहर की इस लड़की को
असहजता के इतने बहाने मिल जायेंगे
ख़ामोशी को कमजोरी समझने वाले
अनेकों नासमझ महाशय मिल जायेंगे
कभी सोचा न था
जीवन की दौड़ में पिछड़ जायेंगे।
न इल्म था कभी
इन परिस्थियों में भी जी जायेंगे
अपनी तन्हाई में हीरे मिल जायेंगे
लोगों की दुनिया से परे
शब्दों की मायानगरी में खो जायेंगे
सही- गलत के द्वंद्व से छूटकर
आत्मविश्वास की ओर बढ़ जायेंगे
आँधियों से लड़ना सिख जायेंगे।
दुनिया से लड़ते- लड़ते
खुद को बखूबी समझ जायेंगे
छोड़ कर हर ठोंग- दिखावे को
अपनी अंतरात्मा के परखी बन जायेंगे
खुद ही अपना पारस बन जायेंगे
दुनियादारी सीख जायेंगे
कभी सोचा न था
इतने बदल जायेंगे।
सही मायनों में जीना सीख जायेंगे
निराशाओं में आशा के नए पल्लव खिल जायेंगे
भावों के वेग में बह कर भी संभल जायेंगे
कभी सोचा न था
इतने बदल जायेंगे।

Wednesday 3 November, 2010

एक दीप मेरा हो

दीपों की इस अवली में एक दीप मेरा हो

साँसों की लड़ियों में एक ज्वाल कैद हो

अंधकार से लड़ती एक अंतर्जोत हो

ठहरा सा हर पल मेरा दैदीप्यमान हो

हौसलों की पंक्ति में बस एक मुकाम मेरा हो।

बंदिशों की लड़ियाँ टूट कर बिखर पड़ें

ख़ामोशी की कड़ियाँ उफान बन बरस पड़ें

आत्मविश्वास के आगे सारे झूठ टूट पड़ें

कुछ ऐसी अखंड उस दीप की जोत हो

दीपों की इस अवली में एक दीप मेरा हो।

दिलों की कड़वाहट में मिठास भर सकूं

ऐसा उस दीप में मेरे प्यार का तेज़ हो

अधकच्चे रिश्तों में एक पक्का धागा मेरा हो

उमंगों की रोशनी में बस एक अमर जोत हो

दीपों की इस अवली में एक दीप मेरा हो।

मेरे भावनाओं के समंदर में इतना वेग हो

अंधकार के बीच भी मंजिल का प्रकाश हो

नयी सुबह का कुछ यूँ अलबेला अंदाज़ हो

दीपों की इस अवली में एक दीप मेरा हो

हौंसलों की पंक्ति में बस एक मुकाम मेरा हो।

Wednesday 25 August, 2010

चाहतें

ज़िन्दगी गर रेत का ढेला है,
तो उसे मुट्ठी में भरना चाहते हैं हम।
न हुए कामयाब तो क्या,
एक कोशिश फिर भी करना चाहते हैं हम।।
पतंग बन खुले आसमान में उड़ना चाहते हैं हम,
उमंगों के दम पर नए आयाम लिखना चाहते हैं हम।
कट जाने पर भी मुस्कुराना चाहते हैं हम,
टूट कर फिर से नयी उड़ान भरना चाहते हैं हम॥
दरिया में मदमस्त नाव बन मौज करना चाहते हैं हम,
बिना थमे सुध-बुध खोकर बहना चाहते हैं हम
डूब गए तो फिर से तर जाना चाहते हैं हम,
बस निरंतर मुश्किलों से लड़े प्रवाहित होना चाहते हैं हम।।
अगर रह गए कुछ पल अकेले तो,
तेरी बातों के आलिंगन में खोना चाहते हैं हम।
ज़िन्दगी गर एक लम्बा सफ़र है,
तो हमसफ़र तेरा साथ चाहते हैं हम।।
इन चाहतों के समंदर में गोते लगाना चाहते हैं हम,
बस अपने मन की आवाज़ सुनना चाहते हैं हम।
दुनिया नहीं, बस कुछ दिल जीतना चाहते हैं हम
कामयाबी के शिखरों पर अपना नाम लिखना चाहते हैं हम।।

Wednesday 18 August, 2010

ये कैसा मौत का तमाशा है

ये कैसा मौत का तमाशा है
पागलपन में डूबा जग सारा है
ढोंग करता मनु, हर हथियारा है
ये कैसा मौत का तमाशा है।
किसी की मौत यहाँ सुनहरा मौका है
अपना मतलब सिद्ध करने का पुलिया है
गुस्से को जाहिर करने का गलियारा है
ये कैसा मौत का तमाशा है।
ये कैसी खोखली श्रधांजलि है
आँखें है नम पर मन में मतलब की आग है
मौत के नाम पर खोखला अधिकार जगा है
ये कैसा मौत का तमाशा है।
मिडिया की होड़ में सच लगा है
दंगे में उसकी मौत का बदला छुपा है
कहो तो, सच्चाई के लिए, ये झगडा है
ये कैसा मौत का तमाशा है।
दुनिया का कैसा ये मृत्यु महोत्सव है
सच्चाई के नाम पर ढोंग का तांडव है
पागलपन में डूबा जग सारा है
ये कैसा मौत का तमाशा है।