दीपों की इस अवली में एक दीप मेरा हो
साँसों की लड़ियों में एक ज्वाल कैद हो
अंधकार से लड़ती एक अंतर्जोत हो
ठहरा सा हर पल मेरा दैदीप्यमान हो
हौसलों की पंक्ति में बस एक मुकाम मेरा हो।
बंदिशों की लड़ियाँ टूट कर बिखर पड़ें
ख़ामोशी की कड़ियाँ उफान बन बरस पड़ें
आत्मविश्वास के आगे सारे झूठ टूट पड़ें
कुछ ऐसी अखंड उस दीप की जोत हो
दीपों की इस अवली में एक दीप मेरा हो।
दिलों की कड़वाहट में मिठास भर सकूं
ऐसा उस दीप में मेरे प्यार का तेज़ हो
अधकच्चे रिश्तों में एक पक्का धागा मेरा हो
उमंगों की रोशनी में बस एक अमर जोत हो
दीपों की इस अवली में एक दीप मेरा हो।
मेरे भावनाओं के समंदर में इतना वेग हो
अंधकार के बीच भी मंजिल का प्रकाश हो
नयी सुबह का कुछ यूँ अलबेला अंदाज़ हो
दीपों की इस अवली में एक दीप मेरा हो
हौंसलों की पंक्ति में बस एक मुकाम मेरा हो।
1 comment:
दीपपर्व की बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
दीपपर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ
Post a Comment