Friday 13 August, 2010

मैं कौन हूँ? मेरी पहचान क्या है?

कटी पतंग सा मेरा हर फ़साना क्यों है?
अधमरे सपनों का यहाँ बसेरा क्यों है?
हर दिशा में पसरा वीराना क्यों है?
बिखरा मेरी ज़िन्दगी का हर पल क्यों है?
मैं कौन हूँ? मेरी पहचान क्या है?
दो पाटों के बीच ज़िन्दगी उलझी क्यों है?
अपनों के बीच ये दरारें क्यों है?
हमसफ़र और सहचर की ये दुविधा क्यों है?
निराशा के समंदर में गुम हौसला कहाँ है?
मैं कौन हूँ? मेरी पहचान क्या है?
खुद को ढूढने की कोशिश अधूरी क्यों है?
खुद को कम आंकने की आदत क्यों हैं?
शब्दों की दुनिया में ये खालीपन क्यों है?
सोच की गहराई में ये खोखले सिद्धांत क्यों है?
मैं कौन हूँ? मेरी पहचान क्या है?
मेरे सवालों का जवाब क्या है?
इस अंतर्द्वंद्व का अंत क्या है?
इस कलम की सोच क्या है?
इस अवनि की मंजिल क्या है?
मैं कौन हूँ? मेरी पहचान क्या है?

2 comments:

Udan Tashtari said...

सभी के मन का अंतर्द्वन्द रचना में उतार दिया है, बहुत बढ़िया.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

ये सारे प्रश्न बहुतों के मन में उथल पुथल मचाते हैं ....अच्छी अभिव्यक्ति