१) वो कहते हैं महखानों में महफ़िल सजा करती है,
पैमानों पर ज़िन्दगी बिका करती है,
हर जाम पर हसीं लुटा करती है,अरे! झांक लेते हमारे दिल में,
उनकी हर प्रेरणा, हर तारीफ के लिए,
इस अवनि के शब्द बहा करते हैं,
विचारों के झरने कल- कल किया करते हैं।
आसमान छूने की चाहत तो सबकी होती है, कोई ज़मीन पर चलकर तो देखे, तारे तो बहुत है आसमान में, कोई ज़मीन पर हीरा बनकर तो देखे.
१) वो कहते हैं महखानों में महफ़िल सजा करती है,
पैमानों पर ज़िन्दगी बिका करती है,
हर जाम पर हसीं लुटा करती है,मैं कहाँ लिखती हूँ
बस दिल की दो बातें कहती हूँ
मन के दर्पण की तस्वीर बनती हूँ
अपनी कलम की कहानी कहती हूँ
नज़रों के नज़रों को बयां करती हूँ
ज़माने के सच को बताती हूँ,
दिल के अरमान बताती हूँ
मैं कहाँ लिखती हूँ
बस दिल की दो बातें कहती हूँ।
अपने जज्बातों को ज़ुबान देती हूँ
कुछ खट्टे मीठे पलों को संजोती हूँ
ज़िन्दगी के लम्हों को शब्दों मैं कैद करती हूँ
सागर की लहरों पर काव्य लिखा करती हूँ
आसमान की चादर पर अरमानों को लिखा करती हूँ
ज़मीन की हकीकत पर सच्चाई बुना करती हूँ
बस यूँ ही एक नगमा लिखा करती हूँ
मैं कहाँ लिखती हूँ
बस दिल की दो बातें कहती हूँ।
नहीं मैं कोई लेखक नहीं
कोई कवि, कोई महान् नहीं
बस एक कलमकार हूँ
शब्दों के समंदर मैं डूबी हूँ
कुछ नही है मेरा, इन शब्दों के अलावा
इन भावनाओं, जज्बातों के अलावा
बस शब्दों से खेला करती हूँ
मैं कहाँ लिखती हूँ
बस दिल की दो बातें कहती हूँ।
सूना आँगन, सूना गलियारा है
सूना पनघट, सूना हर किनारा है
कभी खेलती थी ज़िन्दगी यहाँ पर
कभी साँस लेती थी खुशी यहाँ पर
आज बस बंजर हर नज़ारा है
वीरानियों का पसरा तमाशा है।
कभी यहाँ होती थी अठखेलियाँ
कभी यहाँ नाचती थी कठपुतलियां
कभी यहाँ मदमस्त हो नाचते थे मोर
कभी यहाँ होता था बच्चों का शोर
आज सूखे पेड़ों का राज है
सूना आँगन, सूना गलियारा है।
काँटों भारी पगडंडी के छोर पर
दूर एक झोंपड़ी के दरवाज़े पर
दो बूढ़ी आँखों का बसेरा है
निराशा में डूबी एक आशा का गुज़ारा है
ज़िन्दगी एक अजब तमाशा है,
सूना आँगन, सूना गलियारा है।
बेहाल भारत का हर गाँव है
अवनति की ओर बढ़ता इंसान है
भूल गया है अपनी पहचान को
बस शहरों में दिल लगा कर बैठा है
गैरों में अपनों को तलाशने पर आमादा है।
जिस गाँव में जीवन बिताया
जिस मिट्टी ने जीना सिखाया
जिस पनघट ने अमृत पिलाया
जिस वृक्ष ने फल खिलाया
आज वहीं वीरानगी, अंधेरा है
सूना आँगन, सूना गलियारा है।
सब कहते हैं- हम आज में जीते हैं
पर क्या हम कल को भुला सकते हैं
हमारी संस्कृति को भूल सकते हैं
अपनी धरोहर को मिटा सकते हैं
शायद कभी तो कोई ये समझेगा
फिर शायद सूना आँगन, सूना गलियारा 'न ' रहेगा।