मैं कहाँ लिखती हूँ
बस दिल की दो बातें कहती हूँ
मन के दर्पण की तस्वीर बनती हूँ
अपनी कलम की कहानी कहती हूँ
नज़रों के नज़रों को बयां करती हूँ
ज़माने के सच को बताती हूँ,
दिल के अरमान बताती हूँ
मैं कहाँ लिखती हूँ
बस दिल की दो बातें कहती हूँ।
अपने जज्बातों को ज़ुबान देती हूँ
कुछ खट्टे मीठे पलों को संजोती हूँ
ज़िन्दगी के लम्हों को शब्दों मैं कैद करती हूँ
सागर की लहरों पर काव्य लिखा करती हूँ
आसमान की चादर पर अरमानों को लिखा करती हूँ
ज़मीन की हकीकत पर सच्चाई बुना करती हूँ
बस यूँ ही एक नगमा लिखा करती हूँ
मैं कहाँ लिखती हूँ
बस दिल की दो बातें कहती हूँ।
नहीं मैं कोई लेखक नहीं
कोई कवि, कोई महान् नहीं
बस एक कलमकार हूँ
शब्दों के समंदर मैं डूबी हूँ
कुछ नही है मेरा, इन शब्दों के अलावा
इन भावनाओं, जज्बातों के अलावा
बस शब्दों से खेला करती हूँ
मैं कहाँ लिखती हूँ
बस दिल की दो बातें कहती हूँ।