मौसमों की एक गुस्ताखी है,
बेपरवाह बूंदों की मज़बूरी है,
ठंडी नब्ज़ों की परेशान करवटें हैं,
जलती तमन्नाओं की राख है,
बेजान पतझड़ों का ये बीहड़ है।
कल्पना की कोशिश निष्क्रिय है,
कलम की स्याही भी सूखी है,
दशा औ दिशा अब कमज़ोर है,
मौसम हर अब खामोश है,
नैनों में तिमिर की बस आहट है।
नैनो में तिमिर की बस आहट है।
बेपरवाह बूंदों की मज़बूरी है,
ठंडी नब्ज़ों की परेशान करवटें हैं,
जलती तमन्नाओं की राख है,
बेजान पतझड़ों का ये बीहड़ है।
परछाइयों से कांपती पदचाप है,
अधीर मन की टूटन-फूटन है,
अधकच्चे सपनों की बिखरन है,
अनकहे शब्दों का कालुष है,
क्षण में जीवन की ये करवट है।
कल्पना की कोशिश निष्क्रिय है,
कलम की स्याही भी सूखी है,
दशा औ दिशा अब कमज़ोर है,
मौसम हर अब खामोश है,
नैनों में तिमिर की बस आहट है।
नैनो में तिमिर की बस आहट है।
मौसमों का रवैय्या कुछ रूठा है,
नदी का बहाव ज़रा ठहरा है,
लिए हाथ में पतवार फिर भी,
मंजिल के तरफ एक कदम लिया है,
खुद को ढूँढने का साहस किया है।
मन की आँखों को जाग्रत किया है।
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