ऊब गया है अब मन मेरा
रो उठा है हर मंज़र मेरा
कांप रहा है हर सच मेरा
ये कैसा दुहरापन है ज़िन्दगी तेरा,
दोगलेपन में डूबा है हर इन्सान तेरा।
राम की माला में रावण का मोती सिया
मंदिर की दीवारों को खून से रंगा गया
रहीम की अहिंसा में हिंसा को खोज लिया
निर्बल को कुचलने में सुकून हासिल कर लिया
ये कैसा दुहरापन है ज़िन्दगी तेरा,
दोगलेपन में डूबा है हर इंसान तेरा।
मन में देवता, आचरण में राक्षस, हर मनु यहाँ
धर्म का नगाड़ा पीटता हर ढोंगी यहाँ
खोखले सिधान्तों को रटता हर कमज़ोर यहाँ
वसुधैव- कुटुम्बकम को छेदता हर जात- पात यहाँ
ये कैसा दुहरापन है ज़िन्दगी तेरा,
दोगलेपन में डूबा है हर इंसान तेरा।
अपने ही खून को जूठे मान में बहा दिया
आज़ादी की नासमझी में बेटी को जल्दी ब्याह दिया
आवाज़ उठाने पर औरत को कुलक्षनी बना दिया
बेटे की अय्याशियों पर नादानी का पर्दा डाल दिया
ये कैसा दुहरापन है ज़िन्दगी तेरा,
दोगलेपन में डूबा है हर इंसान तेरा।
इज्ज़त की चादर में अपनों की इच्छाओं को ढक दिया
समाज के साए में कई अरमानों को जला दिया
संस्कारों की नाव में कई इंसानों को डुबो दिया
सच्चाई के डर से अपना ईमान बेच दिया
ये कैसा दुहरापन है ज़िन्दगी तेरा,
दोगलेपन में डूबा है हर इंसान तेरा।
चीख रहा है अब मन मेरा
व्याकुल है हर क्षण मेरा
मेरी आवाज़ दबाने को आतुर है जग तेरा
ये कैसा दुहरापन है ज़िन्दगी तेरा,
दोगलेपन में डूबा है हर इंसान तेरा।