Saturday, 17 May 2008

ये कैसे स्वतंत्र हम

सब कहते हैं स्वतंत्र हम

आजाद बन्धन मुक्त हम

हाँ, अंग्रेजों को भगा दिया

हाँ, माँ को बन्धन मुक्त किया

लाखों वीरों को होम किया

हाँ, खुली हवा में साँस (दम) लिया

पर हाय! इतने सालों में

आज़ादी का क्या हश्र किया

हर स्वतंत्रता दिवस पर

पूछूँ मैं सबसे, कहां आजाद हम

पर के नहीं स्व के अधीन हम

अंग्रेजों के नहीं, अंग्रेजों के नहीं

स्वार्थ के अधीन हम

फिर भी कहते स्वतंत्र हम।

औरों के गुलाम नहीं तो क्या

स्पष्ट अधीन नहीं तो क्या

पाश्चात्य संस्कृति के गुलाम हम

स्वदेशी नहीं विदेशी ब्रांड के गुलाम हम

छाछ नहीं पेप्सी कोक के आदी हम

पिज्जा मेकडोनाल्ड के आदी हम

खान -पान तक विदेशी चाहत

फिर भी कहते स्वतंत्र हम ।

स्विस बैंकों में खाता खुलवाते

पढ़ते यहाँ पलायन करते

ज्ञान को अपने वहाँ खपाते

नीम- चांवल को बचा न पाये

अंतर्राष्ट्रीय कर्जे में डूबे आर्धिक रूप से विकलांग हम

फिर भी कहते स्वतंत्र हम।

ये सब रही विदेशी बातें

पर घर में भी हम नहीं स्वतंत्र

बुराई, भ्रष्टाचार दिल में बसाए

आतंकवाद को गले लगाये

वैर- वैमनस्य में गोते खाए

जाती धर्म पंथ विवाद बढाये

खोखले सिधान्तों में जकडे हम

बुराई के फंदे में गुंथे हम

फिर भी कहते स्वतंत्र हम।

पर ऐसा नहीं की हममें जोश नहीं

कुछ कर गुजरने का होश नहीं

पर ज़रूरत है नए आगाज़ की

एक नयी आवाज़ की

चूँकि बिन जागृति आजादी न पा सकेंगे हम

तभी होंगे सही अर्थों में स्वतंत्र हम।

2 comments:

सागर नाहर said...

अवनी जी
वाकई हम कहने को, नाम मात्र को ही आजाद हुए हैं। बाकी हमसे बड़ा गुलाम शायद ही दुनिया को कोई देश होगा।
बहुत बढ़िया रचना से आपने अपनी बात कही..
हिन्दी चिट्ठा जगत में आपका हार्दिक स्वागत है, आप हिन्दी में बढ़िया लिखें और खूब लिखें यही उम्मीद है।

एक अनुरोध है कृपया यह वर्ड वेरिफिकेशन का टंटा हटा दें, यह टिप्पणी करते समय बड़ा परेशान करता है।
सागर (जैन) नाहर
हैदराबाद
॥दस्तक॥
तकनीकी दस्तक
गीतों की महफिल

शोभा said...

अवनि तुमने सही कहा है। हम केवल बाहर से ही स्वतंत्र हैं। सुन्दर अभिव्यक्ति।