Sunday, 27 February 2011

कभी सोचा न था

कभी सोचा न था
इतने बदल जायेंगे
देख कर दुःख दुनिया का
मन ही मन मुस्कुराएंगे
लिखे न जो शब्द कभी
आसानी से कह जायेंगे
कभी सोचा न था
कह कर भी सब यूँ खामोश हो जायेंगे।
स्व- समझदारी के भ्रम में
दुनिया से छले जायेंगे
लोगों में पहचाने जाने की होड़ में
अपनी ही नज़रों में खो जायेंगे
दोस्तों की चाह में
बेगानों का समां पाएंगे
कभी सोचा न था अपनी मासूमियत भूल जायेंगे
चंद महीनों में इतने बदल जायेंगे।
हंसी- ठ्ठे की राहों में
गम के रोड़े हज़ार मिल जायेंगे
छोटे शहर की इस लड़की को
असहजता के इतने बहाने मिल जायेंगे
ख़ामोशी को कमजोरी समझने वाले
अनेकों नासमझ महाशय मिल जायेंगे
कभी सोचा न था
जीवन की दौड़ में पिछड़ जायेंगे।
न इल्म था कभी
इन परिस्थियों में भी जी जायेंगे
अपनी तन्हाई में हीरे मिल जायेंगे
लोगों की दुनिया से परे
शब्दों की मायानगरी में खो जायेंगे
सही- गलत के द्वंद्व से छूटकर
आत्मविश्वास की ओर बढ़ जायेंगे
आँधियों से लड़ना सिख जायेंगे।
दुनिया से लड़ते- लड़ते
खुद को बखूबी समझ जायेंगे
छोड़ कर हर ठोंग- दिखावे को
अपनी अंतरात्मा के परखी बन जायेंगे
खुद ही अपना पारस बन जायेंगे
दुनियादारी सीख जायेंगे
कभी सोचा न था
इतने बदल जायेंगे।
सही मायनों में जीना सीख जायेंगे
निराशाओं में आशा के नए पल्लव खिल जायेंगे
भावों के वेग में बह कर भी संभल जायेंगे
कभी सोचा न था
इतने बदल जायेंगे।